पलक - भाग-१ Anil Sainger द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पलक - भाग-१

मैं और विराट पहले एक ही कम्पनी में काम किया करते थे | लेकिन पिछले कुछ समय से उसे भूत सवार था कि इस कम्पनी में कोई भविष्य नहीं है और न ही ये कोई तरक्की देने वाले हैं | इसलिए जितनी जल्दी हो सके कम्पनी बदल लेते है | वह यहाँ नौएडा में ही एक किराए के मकान में अकेला रहता था इसलिए उसके लिए पैसे की ज्यादा अहमियत थी जबकि मैं पैसे से ज्यादा अनुभव पर जोर देता हूँ | मेरी सोच है कि पहले अनुभव प्राप्त कर लो फिर पैसे के बारे में सोचो |

मेरे काफी मना करने के बावजूद भी वह नहीं माना और कुछ पैसों की तरक्की देख उसने कम्पनी तो बदल ली लेकिन अब परेशान है | एक दिन दोपहर को जब उसका फ़ोन आया तो वह काफ़ी थका हुआ और निराश लग रहा था | वह बोला ‘मैंने जल्दबाजी में कम्पनी तो बदल ली लेकिन अब अफ़सोस हो रहा है कि क्यों मैंने तेरी बात नहीं मानी | मुझे जो अनुभव और काम चाहिए था वो मुझे यहाँ भी नहीं मिल रहा है | भाई इसी चक्कर में मैं आज छुट्टी कर एक और कम्पनी में इंटरव्यू दे कर आया हूँ | उन्होंने बोला कि वह शाम तक फ़ोन करके बताएंगे | अगर तू शाम को आ जाए तो अच्छा रहेगा | पिछले एक दो-दिन से मेरी तबियत और दिमाग दोनों ही खराब चल रहे हैं’ | मैं उसकी बात सुन बोला ‘ठीक है मैं शाम को आ तो जाऊँगा लेकिन ज्यादा देर बैठूंगा नहीं’| विराट यह सुन खुश होते हुए बोला ‘ठीक है | जैसे तेरी इच्छा’, कह उसने फ़ोन रख दिया |

उस दिन जब मैं उसके घर पहुँचा तो वह एक इंग्लिश फिल्म पैरानोर्मल एक्टिविटी देख रहा था | मेरे पहुँचते ही वह फिल्म बंद कर उठा और बच्चों की तरह मेरे गले लग गया | मैं उसे कुर्सी पर बैठाते हुए बोला ‘भाई आज तू कुछ ज्यादा ही सेंटी हो रहा है | सब ठीक तो है’ | विराट अटकते हुए बोला ‘कुछ नहीं यार, बस तू बहुत दिन बाद मिला तो थोड़ा सेंटी होना तो बनता है’, कह कर वह न चाहते हुए भी मुस्कुरा दिया | विराट कुछ और बोल पाता इससे पहले ही उसके मोबाइल की घंटी बज उठी | वह फ़ोन उठा दूसरे कमरे में चला गया और फिर वहां से नाचता हुआ आया और मेरे गले लग गया |

मैं हैरान होते हुए बोला ‘अब क्या हुआ’ | विराट मुझसे अलग होते हुए बोला ‘आज मैं जिस कम्पनी में इंटरव्यू देने गया था उसमें मेरा सिलेक्शन हो गया है और तनख्वाह भी सात हजार ज्यादा मिलेगी’ |

मैं खुश होते हुए बोला ‘बहुत बढ़िया | अब ये बता कि जॉब प्रोफाइल क्या है’ | विराट बोला ‘सिस्टम एनालिस्ट’ | मैं उसे गले लगाते हुए बोला ‘भाई तेरी तो निकल पड़ी | तू यही तो चाहता था और आखिर कामयाब हो ही गया | पार्टी तो बनती है’ | विराट बोला ‘क्यों नहीं, कह कर वह मेरे काफी मना करने के बावजूद बीयर लेने चला गया |

मैं घर पर खाली बैठा था इसलिए वह जो फिल्म देख रहा था मैंने न चाहते हुए भी लगा ही ली | कुछ ही देर में ही विराट आ गया और फिर हम दोनों ने बीयर पीते हुए वह फिल्म पूरी देखी | जब फिल्म खत्म हुई तो अचानक मेरी नजर घड़ी पर पड़ी तो मेरी तो जान ही निकल गई | उस समय रात के साढ़े दस बज रहे थे | मुझे परेशान देख विराट बोला ‘भाई इस समय मेट्रो मिलनी मुश्किल है | आज तू यहीं रह जा | सुबह यहीं से ऑफिस चले जाना’ |

मैं अपना बैग उठाते हुए बोला ‘बेटा तू मेरे बापू जी के गुस्से को नहीं जानता | मुझे हर हालत में घर तो जाना ही पड़ेगा | वैसे मैंने यहाँ आते हुए माँ को बोल दिया था कि मुझे देर हो जाएगी | बाकि देखता हूँ अगर आखिरी मेट्रो निकल गई तो कैब से चला जाऊँगा’ | विराट मना करता रहा लेकिन मैं घर जाने के लिए निकल ही पड़ा |

मेट्रो स्टेशन पहुँच कर मेरी जान में जान आई | आखिरी मेट्रो अभी आने वाली थी | स्टेशन पर इक्का-दुक्का पैसेंजर ही खड़े थे | मैं अभी इधर-उधर देख ही रहा था कि गाड़ी आ गई | मैं जल्दी से दूसरे डिब्बे में चढ़ गया और दरवाजे के साथ वाली सीट पर ही बैठ गया | बैठने के बाद जब मैंने नज़र इधर-उधर दौड़ाई तो पाया कि महिलाओं के लिए आरक्षित पहला डिब्बा बिलकुल खाली था | मेरे डिब्बे के दूसरे कौने पर सिर्फ तीन-चार लोग ही बैठे थे और बीच में सारी सीटें खाली थीं | यह सोच कर कि अभी तो लगभग एक घंटा लगने वाला है मैं आराम से पैर फैला कर बैठ गया | कुछ शराब का और कुछ उस भुतहा फिल्म का नशा था | मेरी आँखें खुद-ब-खुद ही बंद होती चली गईं | आँख बंद होते ही वह भुतहा फिल्म फिर से मेरे दिमाग में चलने लगी | उस फिल्म में लड़की बिस्तर पर लेटी हुई थी कि अचानक उसे महसूस हुआ कि कोई उसे पैरों से पकड़ने की कोशिश कर रहा है | यह देख मुझे भी महसूस हुआ कि कोई मेरे पैरों को पकड़ कर घसीटना चाह रहा है | मैंने डर कर आँखें खोलीं तो देखा कि मेट्रो किसी स्टेशन पर रुक कर चल दी थी | डिब्बे में रौशनी कुछ कम हो गई थी | कई बार ऐसा होता है लेकिन फिर भी एक डर-सा जरूर लगा | किसी के ‘सॉरी’ बोलने पर मेरी नजर जब सामने की सीट पर पड़ी तो आँखें फटी की फटी रह गईं | सामने की सीट पर एक बहुत ही सुंदर लड़की बैठी हुई मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी | मुझे ऐसे हैरानी से देखते हुए देख वह बोली ‘मेरा पैर आपके पैर से टकरा गया था उसके लिए सॉरी बोल तो दिया है | आप गुस्से से ऐसे क्यों देख रहे हैं | मैं मानती हूँ कि मेरे कारण आपकी नींद ख़राब हो गई है......’, कह कर वह हँसते हुए फिर से बोली ‘उसके लिए एक बार फिर से सॉरी | अब तो ठीक है न’ |

मैं अभी भी उसे एक टक देखे जा रहा था | असल में वह खूबसूरत ही इतनी थी कि नजर उस पर से हट ही नहीं रही थी | बड़ी-बड़ी नशीली आँखें सुंदर चेहरा और उस पर बालों की आती लटें ऐसे लग रहीं थी जैसे चाँद को ढांपते बादल | मेरी नजर उसके चेहरे से फ़िसलते हुए जब नीचे और चली तो मैं देख कर हैरान था कि रात के इस समय उसने काले रंग का बिना बाहों का छोटा-सा टॉप पहना हुआ था | काले टॉप में उसकी गोरी-गोरी मांसल बाहें उसे और भी सुंदर बना रही थीं | टॉप पर जड़े सितारे डिब्बे में चारों तरफ चमक फैला रहे थे | उसका टॉप काफी छोटा था और जीन शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया था | कुल मिलाकर उसका पहनावा बहुत ही सेक्सी और उत्तेजित करने वाला था | वह मुझे ऐसे हैरानी से और एक टक देखते देख मुस्कुराते हुए बोली ‘क्या आपने कभी कोई सुंदर लड़की नहीं देखी’ |

मैं अपनी झेंप मिटाते हुए बोला ‘मैडम रात के इस समय ऐसी ड्रेस में सुंदर और अकेली लड़की कभी नहीं देखी | आप सचमुच बहुत ही हिम्मती हैं’ | वह अपनी सीट से उठ कर मेरे सामने आकर खड़े होते हुए बोली ‘अगर आप बुरा न माने तो मैं आपके साथ बैठना चाहती हूँ’ | मैं खुश हो उसे जैसे ही बैठने के लिए इशारा करता हूँ तो वह बहुत ही बेतकल्लुफी से मेरे साथ बैठ जाती है | उसके शरीर से आती गंध और मेरे शरीर से टकराते उसके अंग मेरी उत्तेजना को पल दर पल बढ़ा रहे थे |

मुझे चुप देख वह बोली ‘मेरा नाम पलक है’, कह कर उसने मेरी और अपना हाथ बढ़ा दिया | उसे ऐसा करते देख मैंने भी न चाहते हुए अपना हाथ आगे बढ़ा दिया | उसका हाथ, हाथ में आते ही मेरी उत्तेजना और बढ़ गई लेकिन दूसरे ही पल उसकी कोमल लेकिन बिलकुल ठंडी हथेली को छू कर मेरी उत्तेजना हैरानी में परिवर्तित हो गई | मैं कुछ कह पाता इससे पहले ही वह बोल उठी ‘मैं आपकी हालत समझ सकती हूँ | रात के ग्यारह बजे ऐसी ड्रेस पहन कर या तो धंधे वाली या फिर अपना हुस्न दिखा कर लूटने वाली लड़कियाँ ही घूमती हैं | क्यों मैं सही कह रही हूँ न और आप भी यह फ़ैसला नहीं कर पा रहे हैं कि मैं कौन सी तरह की हूँ’ |

पलक की बात सुन कर मैं हैरान था कि मैं यह सोच ही रहा था और इसने बोल भी दिया | मैं सकपका कर कुछ अटकते हुए बोला ‘आ...पने जो कुछ भी कहा वह बिलकुल सच है क्योंकि आजकल ज्यादात्तर ऐसा ही हो रहा है और इसीलिए अगर आपकी तरह कोई मजबूर भी होगा तो वैसा ही समझा जाएगा’ | जो मैं चाह कर भी नहीं बोल पाया वह था कि मुझे आप वैसी नहीं दिख रही हैं | मैं तो आप से नजर ही नहीं हटा पा रहा हूँ | आप हैं ही इतनी सुन्दर | इसमें मेरी नजर और दिल का क्या कसूर है | मेरी बात सुन कर वह मुस्कुराते हुए बोली ‘आप शायद कुछ और भी बोलना चाहते थे लेकिन बोल नहीं पाए | क्यों सही बात हैं न’?

मैं हैरान था कि इसे कैसे पता लगा | वह मुझे चुप देख कर खिलखिला कर हँसते हुए बोली ‘बातें दिल में नहीं रखनी चाहिए | खैर आप नहीं बोलना चाहते हैं तो कोई बात नहीं’, कह वह एक लम्बा साँस लेते हुए फिर से बोली ‘आप ने मुझ से हाथ मिलाते हुए महसूस किया होगा कि अभी इतनी ठंड भी नहीं हैं फिर भी मेरे हाथ बर्फ की तरह ठंडे हैं | यह सुन मैंने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया | जिसे देख वह बोली ‘असल में इतनी रात को अकेली होने की वजह से डर लग रहा था | यह देखिये मेरा पूरा शरीर डर की वजह से ठंडा हो गया है’, कह कर उसने मेरा हाथ पकड़ा और अपने माथे और गले पर लगाते हुए फिर से बोली ‘देखा आपने मैं सही कह रही हूँ न’ | यह सुन कर मैंने एक बार फिर से ‘हाँ’ में सिर हिला दिया |

उसके बाद वह बोलती रही और मैं सुनता रहा | वह जब तक अपने बारे में बता रही थी तब तक तो मेरा ध्यान उसकी बातों में था लेकिन फिर जैसे ही उसने अपने ऑफिस के बारे में और ऑफिस के लोगों के बारे में बात करना शुरू किया तो मेरा ध्यान उसकी बातों पर कम और उसके शरीर से आती गंध और उसके शरीर का बार-बार मेरे से टकराने को महसूस करने में ज्यादा था |